तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्णु सकल जग त्राता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।।
अर्थात् तप के बल से ही ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप के बल से ही बिष्णु सारे जगत का पालन करते हैं। तप के बल से ही शम्भु (रुद्र रूप से) जगत का संहार करते हैं और तप के बल से ही शेषजी पृथ्वी का भार धारण करते हैं॥ हे भवानी! सारी सृष्टि तप के ही आधार पर है। ऐसा जी में जानकर तू जाकर तप कर।
रामचरितमानस के बालकाण्ड में यह प्रसंग आता है जब माता पार्वती स्वप्न में दिखे एक ब्राह्मण द्वारा अपने लिए दिए तपबल के उपदेश को अपनी माता से कहती हैं। इस प्रसंग का सार यह है कि तपबल से ही संपूर्ण ब्रह्मांड मे सृजन, पालन और विध्वंस की प्रक्रिया चलती है अत: ऐसा कोई कार्य नहीं, जो #तपबल से न किया जा सके।
तपबल का एक और प्रचलित प्रसंग है वशिष्ठ -विश्वामित्र कथा। जिसके अनुसार राजा विश्वामित्र, ऋषि वशिष्ट के आश्रम दर्शन हेतु गए जहाँ उन्हें आश्रम में कामधेनु गाय दिखी, जो अमृत को समान दूध प्रदान करने के साथ ही अनेकानेक दिव्य गुणों से युक्त थी। विश्वामित्र जी को वह गाय पसंद आ गई, जिसे उन्होंने वशिष्ट जी से माँगा, किंतु उन्होंने देने से मना कर दिया अत: विश्वामित्र जी ने क्रोध में आकर अपने सैनिकों को ज़बर्दस्ती गाय ले जाने का आदेश दिया। तब वशिष्ट जी ने योद्धावेश में न होते हुए भी अपने तपबल से विश्वामित्र जी को उनकी सेना समेत परास्त कर दिया। जिसके बाद विश्वामित्र जी ने हार मानते हुए कहा कि धिक बलम् क्षत्रिय बलम् ब्रह्मतेजो बलम् बलम् (क्षत्रिय बल तुच्छ है बल तो ब्रह्म तेज ही है) और महान तप करके वशिष्ट जी के समकक्ष पहुँचकर राजा विश्वामित्र से ऋषि विश्वामित्र बने और #सप्तऋषियों में गिने जाने लगे।
कहने का सार यह कि तप का बल इस धरा पर सदैव ही श्रेष्ठ रहा है। प्राचीनकाल से लेकर अब तक अगर सृष्टि में कुछ अप्रत्याशित हुआ है या इस मानव जगत में कभी वृहद्स्तरीय रचनात्मक बदलाव या युगपरिवर्तन हुआ है, तो वह केवल तपबल से ही संभव हो सका है। चाहे महर्षि अगस्त्य का समुद्र के जल को #चुल्लू भर पानी में बदल देना हो, चाहे समुद्र पर वानरसेना द्वारा पत्थर का पुल बना देना हो अथवा आद्य शंकराचार्य का विश्वजगत को #शास्त्रार्थ की चुनौती देकर #अद्वैतवाद की स्थापना हो, सबके पीछे तप का बल ही दृष्टगत होता है। हम विश्वजगत के संदर्भ में इतिहास पर दृष्टि डालें तो जनबल, धनबल, शरीरबल व बुद्धिबल से परिपूर्ण अनगिनत लोग इस धरती पर पैदा हुए और बड़े-बड़े कार्यों को अंजाम दिया, किंतु इन लौकिक शक्तियों से कोई भी संसार को स्थायी विचारधारा या दिशा नहीं दे सका। लेकिन, विश्व के लिए ज्ञान का सर्वकालिक उपयोगी स्रोत प्रदान करने वाले भारतभूमि पर जन्मे अनेक योगियों, ऋषियों, मुनियों को विश्व आज भी जानता व मानता है।
जब भी धर्म की स्थापना हुई और अधर्म का नाश हुआ, वह केवल और केवल #तपस्वियों के #हुंकार से ही हुआ है। शरीर, मन, इंद्रियों से परे आत्मशक्ति के प्रभाव से ही हुआ है। प्रचंड आत्मबल से परिपूरित उस संकल्प शक्ति से हुआ है, जिससे योगियों ने सूर्य की स्थिति को भी प्रभावित कर दिया है। आवश्यकता है, खुले मनमस्तिष्क से देखते हुए उस तपबल की शक्ति, सामथ्र्य व कार्यप्रणाली को जानने-पहचानने व समझने की।
इस धरा पर आज चारों ओर जब अधार्मिक शक्तियाँ धर्म का वेश धरके मानवता को पूर्णरुपेण समाप्त करने हेतु उद्यत हैं, जब सत्य को धारण करने वाले हृदय विलुप्ति के कगार पर हैं और जब पाप निर्द्वंद होकर घर-घर अट्टाहस कर रहा है, तब #धर्मसम्राट युग चेतना पुरुष योगीराज श्री #शक्तिपुत्र जी महाराज ने युगपरिवर्तन का संकल्प लेकर सत्यधर्म की पुनस्र्थापना के लिए विश्वधर्मजगत को निज #तपबल की चुनौती देकर वर्तमान काल में पुरातन काल की भाँति #तप की शक्ति को #प्रासंगिक कर दिया है। वह तपबल जो आज इस संपूर्ण धरा में अन्यत्र कहीं नहीं है। 30 वर्ष से भी अधिक हो गए जब ऋषि की हुंकार ने हज़ारों बार हरएक दिशा में ऋषिवर के तपबल की चुनौती को पहुंचाया, लेकिन सामना करने वाला कभी दूर-दूर तक नज़र नहीं आया। चुनौती के साथ ही सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने निज तपबल से जनकल्याण हेतु तीन धाराओं की स्थापना की, संतुलित और सारयुक्त एक नवीन साधनाक्रम समाज को प्रदान किया, नशा-माँसाहार से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए छुआछूत-जातिभेद से रहित होकर माँ की आराधना करने वाले ऐसे #लाखों धर्मयोद्धा तैयार किये जो स्वार्थ के इस युग में आत्मकल्याण व जनकल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यह विश्वव्यापी चमत्कार केवल और केवल ऋषिवर के तपबल से ही संभव हो सका है।
प्राचीनकाल में ऋषियों-मुनियों व अवतारों के तपबल के माध्यम से हमें किसी कार्य विशेष के द्वारा धर्मस्थापना का वृतांत देखने-सुनने को मिलता है, लेकिन सद्गुरुदेव जी के द्वारा घर-घर में, व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय में धर्मस्थापना का जो पुनीत कार्य किया जा रहा है, वह न तो कभी पहले किया गया है और न ही आगे किया जा सकेगा।
अत: आइये हम सभी ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा प्रदत्त मार्गों का अनुसरण करें एवं महान #तप:शक्ति को प्राप्त करके इस #महाअभियान में अपना सर्वस्व समर्पित करते हुए अपने जीवन को सफल व सार्थक बनाएँ।
#सौरभ_द्विवेदी