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आयुर्वेद और एलोपैथी में मूलभूत अन्तर*
आयुर्वेद -
पथ्येसति गदार्तस्य किमौषध निषेवर्णः ।
पथ्येअसति गदार्तस्य किमौषध निषेवणैः।।
अर्थात्- -
रोगी, पथ्य (उचित आहार-विहार) का पालन करता हो तो दवा-इलाज की आवश्यकता ही क्या और अगर पथ्य (उचित आहार-विहार) का पालन न करे तो फिर औषधि (दवा) सेवन की क्या जरूरत ?
यह श्लोक संभवतः चरक संहिता का है जिसका आशय यह है कि आयुर्वेद, उचित रहन-सहन युक्त दिनचर्या के पालन के साथ संयमित जीवनशैली पर जोर देता है और बीमार होने पर भी आयुर्वेद में औषधि के साथ संयम-परहेज की अनिवार्यता है ताकि बीमारी से स्थाई मुक्ति मिल सके परंतु एलोपैथी इसके ठीक उलट है।
क्या है एलोपैथी -
ना सोने उठने का नियम ना भोजन पानी का परहेज
दवाई-दवाई-दवाई सिर्फ दवाई एलोपैथ है ॥
जाँचें महंगी, दवा भी मंहगी महंगे अस्पताल सभी
जो गरीब के वश की बात नहीं वो मंहगाई एलोपैथ है॥
कुछ रुपए की दवा दुकानों में मिलती कई-कई सौ में
दवा के नाम होती बड़ी लुटाई एलोपैथ है॥
साइड इफेक्ट भी इसमें और स्थाई आराम नहीं
है कारगर कम, ज्यादा हवा हवाई एलोपैथ है॥
दवा के साथ बीमारी की है प्रतिस्पर्धा तबसे
मेरे देश में जबसे यह आई एलोपैथ है॥
आयुर्वेद को पढ़कर ही एलोपैथी रची गई
यह सच है कि आयुर्वेद की परछाई एलोपैथ है॥
कहने का मतलब, एलोपैथी की सबसे बड़ी कमी हर दवा में साइड इफेक्ट होना, महंगा होना और बीमारी के कारण को ना खत्म करके बीमारी को दबाना है। जबकि आयुर्वेदिक औषधियाँ पूर्णतया हानिरहित और बीमारी को जड़ से समाप्त करने के गुण वाली होती हैं।
नोट - आज आयुर्वेद की दुर्लभता के कारण न चाहते हुए भी हम सब अधिकांशतया एलोपैथ पर ही निर्भर हैं अतः एकदम से एलोपैथिक पद्धति को नकारना कृतघ्नता होगी पर जब आयुर्वेद से एलोपैथ की तुलना होगी तो वास्तविकता यही होगी!!